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11th class Economics NCERT chapter 1 summary in Hindi

 Class-11th Economics (NCERT)

                                                                     Ch- 1 

1     'स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था'


                  ' भारत का आर्थिक विकास' इस पुस्तक का मूल उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था की मूलभूत विशेषताओं की जानकारी देना और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हुए विकास  से अवगत कराना है।


 स्वतंत्रता के बाद की विकास की उपलब्धियों को  सही रूप में समझ पाने के लिए स्वतंत्रता पूर्व की अर्थव्यवस्था की सही जानकारी  की आवश्यकता है।


 औपनिवेशिक शासन से पूर्व अपनी स्वतंत्र अर्थव्यवस्था थी 

आय का मुख्य स्त्रोत कृषि था फिर भी अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार  की विनिर्माण गतिविधियां हो रही थी

 सूती और रेशमी वस्त्र धातु आधारित तथा बहुमूल्य मणिरत्न आदि से जुड़ी शिल्प कलाओ के उत्कृष्ट केंद्र के रूप में भारत विश्व भर में सुविख्यात हो चुका था

 भारत में बनी इन चीजों की विश्व के बाजारों में अच्छी सामग्री के प्रयोग तथा उच्च स्तर की कलात्मकता के आधार पर बड़ी प्रतिष्ठा थी।


 औपनिवेशिक शासन की नीतियों से भारत की अर्थव्यवस्था का अधपतन शुरू हुआ  भारत को कच्चे माल  का निर्यातक बनाया जबकि कच्चे माल से इंग्लैंड में तैयार माल के लिए इसका बाजार के रूप में उपयोग किया।




 कृषि क्षेत्रक-

 औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत भारत मूलत है एक कृषि अर्थव्यवस्था ही बना रहा

 85% जनसंख्या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से  कृषि के माध्यम से ही रोजी रोटी कमा रही थी 

बड़ी जनसंख्या का व्यवसाय होने के बावजूद कृषि में गति हीन विकास की प्रक्रिया कभी-कभी गिरावट भी अनुभव की गई

 कृषि अधीन छेत्र के प्रसार के कारण कुल कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई किंतु कृषि उत्पादकता में कमी आती रही

 गतिहीनता का मुख्य कारण

 औपनिवेशिक भू राजस्व व्यवस्था 

जमीदारी प्रथा

 रैयतवाड़ी प्रथा

 महालवाड़ी प्रथा


 प्रौद्योगिकी का निम्न स्तर सिंचाई सुविधाओं के अभाव और उर्वरकों का नगण्य प्रयोग भी कृषि उत्पादकता के स्तर को बहुत निम्न रखने के लिए उत्तरदाई था l

 कृषि के व्यवसायीकरण ने भी किसानों की दुर्दशा बढ़ाई खाद्यान्न फसलों की जगह निकली नगदी फसलों पर जोर



 औद्योगिक क्षेत्रक

 देश की विश्व प्रसिद्ध शिल्प कलाओं का पतन हो रहा था किंतु उसका स्थान ले सकने वाले किसी आधुनिक औद्योगिक आधार की रचना नहीं होने दी गई।

 भारत के इस  विऔधोगीकीकरण के पीछे विदेशी शासकों का दोहरा उद्देश्य था--

 पहला वे भारत को इंग्लैंड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के लिए कच्चे माल का निर्यातक बनाना चाहते थे।

 दूसरा जो इंग्लैंड में निर्मित उत्पाद के लिए भारत को ही बाजार भी बनाना चाहते थे।

 ऐसे आर्थिक परिदृश्य में भारतीय शिल्पकलाओ के पत्तन से भारी बेरोजगारी फैली।

 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में कुछ आधुनिक उद्योगों की स्थापना होने लगी थी किंतु उनकी उन्नति बहुत धीमी हो रही थी।

 प्रारंभ में यह विकास सूती वस्त्र और पटसन उद्योगों को आरंभ करने तक ही सीमित था।

 बीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में लोहा और इस्पात उद्योग का विकास प्रारंभ हुआ जैसे टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी इसको की स्थापना  1907 में हुई।

  द्वितीय विश्व युद्ध के बाद चीनी सीमेंट कागज आदि के कुछ कारखाने भी स्थापित हुए।

 भावी औद्योगिकीकरण को प्रोत्साहित करने हेतु पूंजीगत उद्योगों का  प्राय अभाव ही बना रहा।

 इन कुछ नए कारखानों की स्थापना से देश की पारंपरिक शिल्प कला आधारित निर्माण शालाओं के पतन की भरपाई नहीं हो पाई।


 विदेशी व्यापार 

 शासन के अंतर्गत भारत के आयात निर्यात व्यापार पर ब्रिटेन ने एकाधिकार बना लिया था।

 भारत का आधे से अधिक व्यापार केवल ब्रिटेन तक ही सीमित था जिसमें भारत कच्चे माल का निर्यातक और तैयार माल का आयतक था।

 जिस कारण व्यापार अधिशेष की स्थिति के बावजूद भी यह घाटे में था। 

1869 में स्वेज नहर के खुलने से परिवहन लागत कम हो गई जिससे भारतीय व्यापार पर अंग्रेजों का नियंत्रण और भी सशक्त हो गया।


 जनांकिकीय परिस्थिति

 1881 से नियमित रूप से हर 10 वर्ष पर जनगणना शुरू हो गई।

 जीवन प्रत्याशा बहुत कम थी (32 वर्ष )

 मृत्यु दर ऊंची थी

 साक्षरता दर 16% से भी कम महिला साक्षरता ना के बराबर 7% से भी कम थी

 शिशु मृत्यु दर 218 प्रति हजार थी।

 व्यावसायिक संरचना

 कृषि सबसे बड़ा व्यवसाय 70 से 75% जनसंख्या लगी थी विनिर्माण में 10% सेवा क्षेत्र में 15 से 20% जन समुदाय को रोजगार मिल पा रहा था। 

आधारिक संरचना

 औपनिवेशिक शासन में देश में  रेलो, पत्तनो, जल परिवहन व  डाक तार  आदि का विकास हुआ।

 इसका लक्ष्य जन सामान्य को सुविधा उपलब्ध कराना नहीं था अपितु आर्थिक शोषण की गति तीव्र करना था साथ ही भारत पर प्रशासनिक नियंत्रण सृदृढ करना था।

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